यूपी विधानसभा उपचुनाव में पीडीए की भाजपा ने निकाली काट,टिकट देने में नहीं दोहराई लोकसभा चुनाव वाली गलती,जानें क्या है रणनीति:धनंजय सिंह
यूपी विधानसभा उपचुनाव में पीडीए की भाजपा ने निकाली काट,टिकट देने में नहीं दोहराई लोकसभा चुनाव वाली गलती,जानें क्या है रणनीति:धनंजय सिंह

25 Oct 2024 |  34




लखनऊ।देश भर में 50 सीट पर उपचुनाव हैं,लेकिन सभी की नजरें अब उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर हैं।इन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को उम्मीदवार उतार दिए हैं,लेकिन करहल में बीजेपी ने जो दांव खेला है उसका तोड़ समाजवादी पार्टी कैसे निकालेगी।लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मनमाने तरीके से टिकट बांटा था,जिससे भाजपा को उत्तर प्रदेश में तगड़ा झटका लगा था।लोकसभा चुनाव में तगड़ा झटका खा चुकी भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव में पुराने कार्यकर्ताओं को तवज्जो देकर बड़ा संदेश दिया है।उम्मीदवारों के जरिए भाजपा ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के पीडीए के दांव का भी जवाब देने की भरपूर कोशिश की है। भाजपा ने कल गुरुवार को उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की।इस लिस्ट से साफ है कि कार्यकर्ताओं की पूछ,पुराने वफादारों को जगह और जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है।
इस लिस्ट से ये भी साफ हो गया है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में लगे तगड़े झटके से बहुत कुछ सीखा है।भाजपा ने उपचुनाव से यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि वही एक ऐसी पार्टी है जो हिंदुओं की सभी जातियों का सम्मान करने और सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी है।

भाजपा ने लोकसभा चुनाव में खिसके पिछड़े वोटबैंक को फिर से वापस पाने की भरपूर कोशिश की है।काडर के पुराने सियासी परिवारों को तवज्जो देकर ये संदेश दिया है कि पार्टी में काडर कार्यकर्ताओं का सम्मान बरकरार है।दरअसल लोकसभा चुनाव में टिकट बांटवरे में भाजपा पर काडर की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगे थे।दो सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारकर भाजपा ने इस जाति की उपेक्षा के आरोपों को भी झुठलाने की कोशिश की है।

समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से ही करहल सीट पर सपा का एकछत्र राज कायम रहा है।सपा 1993 से लगातार यहां से जीतती आ रही है,लेकिन 2002 में एक बार सपा चुनाव हारी थी। भाजपा ने सपा को शिकस्त देकर मुलायम सिंह यादव के गढ़ में कमल खिलाया था।अब एक बार फिर भाजपा उपचुनाव में उसी तरह करिश्मा दोहराना चाहती है।करहल विधानसभा में नया प्रयोग करते हुए मुलायम सिंह के परिवार से प्रत्याशी उतारकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।एक तरफ भाजपा ने अनुजेश यादव के बहाने यह बताने का प्रयास किया है कि यादव भी उसके लिए गैर नहीं हैं। पार्टी यादवों को सम्मानजनक राजनीतिक भागीदारी देने को भी तैयार है। जहां तक अनुजेश का सवाल है तो वह आजमगढ़ से सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं।अनुजेश के जरिये भाजपा ने यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि अखिलेश की रीति-नीति को लेकर उनके परिवार में भी सब कुछ ठीक नहीं है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने करहल से अपने सियासी भरत के रूप में तेज प्रताप यादव को चुनावी मैदान उतारा है।जातिगत गणित और अब तक के चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड के लिहाज से करहल की सियासत सपा के अनुकूल रही है। जबकि विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण है।इसीलिए अखिलेश ने 2022 में करहल को अपनी कर्मभूमि बनाया था और अब अपने भतीजे पर भरोसा जताया।ऐसे में सपा के किले में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने अनुजेश यादव को चुनावी मैदान उतारा है।

कभी यादव-जाटव जोड़ो अभियान चला चुकी भाजपा सरकार ने स्व. मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण देकर भी यादवों को भाजपा से जोड़ने की कोशिश की है।मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ये संदेश दे चुकी है। अब अनुजेश को चुनावी मैदान में उतारकर भाजपा ये जताना चाहती है कि उसने पश्चिमी यूपी में यादव परिवार के गढ़ में भी अपनी पकड़ बना ली है। लोकसभा चुनाव 2019 में बदायूं, फिरोजाबाद और कन्नौज सीट जीत चुकी भाजपा मुलायम परिवार के गढ़ में मजबूती से पैर जमाने के लिए लगातार कोशिश करती रही है।

करहल विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।भाजपा ने सपा के प्रत्याशी तेज प्रताप यादव के फूफा अनुजेश यादव को करहल के चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले को और रोचक बना दिया है। तेज प्रताप यादव, लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं और अनुजेश यादव मुलायम सिंह यादव के दामाद हैं।यह मुकाबला यादव परिवार के दो दामादों के बीच हो रहा है,जिससे चुनाव का सियासी माहौल गरम हो गया है।

सियासत में धारणाओं का बहुत बड़ा महत्व है,जिससे अक्सर परिणाम प्रभावित भी होते हैं।हाल में ही हुआ लोकसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है।अब भाजपा उपचुनाव के उम्मीदवारों के जरिये उन धारणाओं को तोड़ने की कोशिश करती हुई नजर आ रही है। परिणाम क्या होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा,लेकिन अनुजेश को उतारकर भाजपा ने ये तो संदेश दे ही दिया है कि अखिलेश की पकड़ अब अपने घर में भी मजबूत नहीं है।अगर अखिलेश यादव अपने नजदीकी रिश्तेदार की आकांक्षाओं का सम्मान नहीं कर सकते तो उनसे आम यादवों के लिए अपनी आकांक्षाओं के पूरा होने की अपेक्षा दिवास्वप्न ही है।

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