ब्यूरो धीरज कुमार द्विवेदी
लखनऊ।उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बाहरी इलाके के गांवों में इन दिनों बाघ का खौफ है।बाघ का पता तब चला जब ग्रामीण बुधई अपने कुछ साथियों के साथ खेतों में काम कर रहा था और अचानक एक वयस्क बाघ को सामने आता देखकर डर से वहीं बैठ गया।बाघ जंगल से कटौली गांव की तरफ आ रहा था।इसके बाद से कई गांवों में लोग बाघ के खौफ के साए में जी रहे हैं।कटौली,हलुवापुर,जमाल नगर और रहमान खेड़ा गांव के लोग अब घरों में महिलाओं और बच्चों को कैद कर रखने लगे हैं।
इन गांवों के लोग अब समूह में खेतों में काम कर रहे हैं और रात के समय घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं।पिछले तीन दिनों से स्कूलों में छुट्टी कर दी गई हैं,ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।बाघ ने अब तक दो नीलगायों को शिकार बनाया है।इससे लोग और भी खौफ में हैं।वन विभाग की टीमें बाघ को तलाशने में जुटी हैं।
बाघ की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन,ट्रैप कैमरे और पिंजरे लगाए हैं। 12 ट्रैप कैमरे और चार वन विभाग की टीमें बाघ को तलाशने में जुटी हैं।पिछले दो दिनों से बाघ के पंजे का नया निशान नहीं मिला है।दुबग्गा रेंजर और एसडीओ मोहनलालगंज ने ग्रामीणों से और अधिक सावधानी बरतने के लिए कहा है।
बाघ के पंजों के निशान कटौली,जमाल नगर,बनिया खेड़ा और लक्ष्मण खेड़ा गांवों में देखे गए थे।हालांकि अब तक बाघ के किसी नए निशान की पुष्टि नहीं हुई है।फिलहाल वन विभाग और प्रशासन बाघ को पकड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जंगलों के घटते दायरे और बढ़ते शहरीकरण के कारण बाघ ग्रामीण इलाकों में आ रहे हैं।
शहरीकरण के कारण जंगली जानवरों के लिए अपने आवासीय क्षेत्र में कमी हो रही है और वे आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं।
लखनऊ जू के पूर्व निदेशक आरके सिंह का कहना है कि आमतौर वयस्क होने के बाद बाघ को कुनबे से अलग कर दिया जाता है।ऐसे में वे अपना नया इलाका बनाने के लिए निकलते हैं,लेकिन रास्ते की समझ न होने के कारण कई बार भटक जाते हैं।अमूमन सीतापुर,पीलीभीत और लखीमपुर से बाघ लखनऊ आते हैं।बाघ के लिए गोमती किनारे-किनारे लखनऊ आना भी आसान होता है। बाकी जिलों में रेस्क्यू किए गए बाघ आमतौर पर पीलीभीत के जंगल से भटके थे।
आरके सिंह का कहना है कि बाघ का मूवमेंट रात में होता है। ये दिन में छिपकर रहते हैं और आसपास के इलाके में एडजस्ट कर लेते हैं।थोड़ा सा भी खतरा महसूस होने पर घंटों बिना आवाज किए छिपे रहते हैं।इनके पंजे गद्दीदार होते हैं। ऐसे में चलने पर आवाज भी नहीं होती। कई बार ऐसे मामले देखे गए हैं, जब बाघ इंसानी बस्ती में तीन से चार महीने रहकर चले गए और आसपास के लोगों को पता ही नहीं चला।रहमान खेड़ा में दिखे बाघ ने अभी तक किसी मवेशी का शिकार नहीं किया है। बाघ जंगली जानवर का ही शिकार कर रहा है।नीलगाय मारकर खाने के बाद बाघ कई दिन आराम से छिपकर रह सकता है।इस कारण भी ट्रेस नहीं हो पा रहा।
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