ब्यूरो धीरज कुमार द्विवेदी
लखनऊ।मां अपने बच्चे को सीने से लगाकर रखती है,उसके रोने से मां का दिल धड़क जाता है।पालनहार मां को कलियुगी संतानें बड़ी होकर सड़क पर छोड़ दें,घर से बाहर कर दें तो मानवता शर्मसार हो जाती है।लखनऊ में वन स्टॉप सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में अप्रैल महीने से नवंबर माह में बाल विवाह, छेड़खानी,रेप,पॉक्सो,दहेज उत्पीड़न आदि जैसे मामले हो गए हैं।इसमें वृद्ध महिलाओं के आंकड़े अधिक हैं।
इस साल अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक वृद्ध महिलाओं के कुल 15 केस आए।तीन वृद्धि महिलाएं घर से भूलवश बीमारी की वजह से आ गई थीं।वहीं 12 को उनके घर से बेसहारा करके सड़क पर छोड़ दिया गया था।वन स्टाॅप सेंटर की ओर से इन तीन महिलाओं को काउंसिल के जरिए उनके घर पहुंचा दिया गया। 2023 में 19 महिलाओं के केस आए। इनमें 15 को उनके घर वालों ने छोड़ दिया। वहीं चार महिलाएं घर से भूलवश आ गई थीं।
वन स्टॉप सेंटर की मैनेजर अर्चना सिंह ने बताया कि अप्रैल से नवंबर के बीच घरेलू हिंसा,मानसिक मंदित और पलायन के बाद वृद्ध महिलाओं को बेघर करने के केस सबसे अधिक आए।इनमें कुछ महिलाएं बहू-बेटे के उत्पीड़न से परेशान होकर खुद ही चली आती हैं। अर्चना सिंह ने बताया कि हमारे कई बार कहने पर भी वह घर नहीं जाती हैं।कुछ महिलाओं से काउंसिल के दौरान पूछा भी जाता है,लेकिन वह वृद्धाश्रम में रहना ज्यादा हितकर समझती हैं।
अर्चना सिंह ने बताया कि मढ़ियांवा की एक 55 वर्षीय महिला को उनके परिवार के लोगों ने छोड़ दिया। उनकी बड़ी संवेदनशील कहानी थी।उनके परिवार से काउंसिल कराकर उन्हें 181 की ओर से काफी संघर्ष कर मिलवाया गया,लेकिन तीन महीने में उनकी मृत्यु हो गई।चिनहट की 60 वर्षीय महिला अपने घर से गुम होकर आ गई थीं। 181 सेंटर ने महिला को बहू-बेटे से मिलवाया।
भूलवश आने वाली वृद्ध महिलाओं पर केजीएमयू के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि डिमेंशिया शुरुआती दिनों में रोजमर्रा की चीजें भूलने तक रहती है,लेकिन यह जैसे-जैसे बढ़ती है वैसे घर के सदस्यों, आस-पास के इलाके को भूलने के साथ बढ़ जाती है।यह बीमारी ब्रेन की नसों के डिजेंरेट होने के कारण होती है। त्रिपाठी का कहना है कि ज्यादातर 60 की उम्र के ऊपर देखने को मिलती है। इसके लिए उचित खान-पान और नियमित दिनचर्या उचित होती है। साथ ही परिवार के लोगों को लक्षण देखकर मरीज के हाथ पर पट्टी,टीशर्ट या कपड़े पर नाम, मोबाइल नंबर लिख देना चाहिए। ताकि, गुम होने की नौबत ही न आए।
वरिष्ठ पत्रकार धनंजय सिंह का कहना है कि मां का महत्व और उसके संघर्ष को याद रखते हुए समाज को जागरूक होना होगा। लोगों को मिलकर इन घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे।मां अनमोल होती है,मां सिर्फ घर की ही नहीं बल्कि समाज की भी नींव होती हैं।
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया,मां की आंखें मुंदते ही घर अकेला हो गया,चलती फिरती हुई आंखों से अज़ा देखी है,मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है।ये चंद लाइनें मां क्या होती है इसकी अहमियत बताने के लिए शायद कम पड़ जाएं।मां तो मां होती है।
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