बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना का बेदख़ल होना क्या पाकिस्तान के हक़ में है: धनंजय सिंह
बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना का बेदख़ल होना क्या पाकिस्तान के हक़ में है: धनंजय सिंह

05 Sep 2024 |  32





लखनऊ।शेख़ हसीना के हाथ से बांग्लादेश की सत्ता निकले हुए एक महीना हो गया है।बीते दिनों ऐसे कई वाक़ये रहे, जिसमें बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार समेत अहम पक्षों ने पाकिस्तान और चीन से रिश्ते मज़बूत करने के संकेत दिए हैं।एक महीने पहले तक जो बांग्लादेश भारत के क़रीब था वो अब चीन और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की वकालत कर रहा है।

बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायुक्त सैय्यद अहमद ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मंत्री नाहिद इस्लाम से एक सितंबर को मुलाक़ात की थी।पाकिस्तान के साथ 1971 का मसला सुलझाने की बात की।दोनों देशों के बीच बीते सालों में 1971 की लड़ाई एक अहम मुद्दा रही है।इससे पहले 30 अगस्त को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से बात की थी।

1971 में पूर्वी पाकिस्तान जंग के बाद पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना था।बांग्लादेश के बनने में भारत की अहम भूमिका थी।वहीं चीन बांग्लादेश बनाए जाने के ख़िलाफ़ था।मगर अब बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार चीन की ओर क़दम बढ़ाती दिख रही है।कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटाई गई थी।जमात-ए-इस्लामी पर शेख़ हसीना सरकार ने 2013 में पाबंदी लगाई थी।

जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी है। इस पार्टी का छात्र संगठन काफ़ी मज़बूत है,जिस आंदोलन के बाद शेख़ हसीना की सत्ता गई उसमें इस संगठन के छात्रों की भूमिका अहम रही है।इस पर देश में हिंसा और चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं।भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जमात पर बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी दंगे भड़काने का भी आरोप लगा था।जमात-ए-इस्लामी की छवि भारत विरोधी मानी जाती है।

जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफ़ीक़-उर-रहमान ने बीते दिनों कहा था कि भारत ने अतीत में कुछ ऐसे काम किए हैं जो बांग्लादेश के लोगों को पसंद नहीं आए।रहमान ने बांग्लादेश में हाल ही में आई बाढ़ के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराया था।रहमान ने कहा था कि बांग्लादेश को अतीत का बोझ पीछे छोड़कर अमेरिका,चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ मज़बूत और संतुलित संबंध बनाए रखना चाहिए।ऐसे में पाबंदी हटने के बाद जमात-ए-इस्लामी के नेताओं से चीनी राजदूत ने मुलाक़ात की।चीनी राजदूत याओ वेन ने कहा कि चीन बांग्लादेश के साथ अच्छे रिश्ते बनाना चाहता है।चीन बांग्लादेश और बांग्लादेशियों का समर्थक है।

शेख़ हसीना सरकार में बांग्लादेश का झुकाव चीन से ज़्यादा भारत की तरफ़ रहा।जुलाई महीने में शेख़ हसीना अपना चीन दौरा बीच में छोड़कर बांग्लादेश लौट आई थीं।इसके बाद शेख़ हसीना ने कहा था कि तीस्ता परियोजना में भारत और चीन दोनों की दिलचस्पी थी, लेकिन वह चाहती हैं कि इस परियोजना को भारत पूरा करे।ज़ाहिर है कि ये बात चीन को रास नहीं आई होगी।कहा जा रहा है कि शेख़ हसीना का सत्ता से बाहर होना चीन और पाकिस्तान के लिए मौक़े की तरह है।चीनी राजदूत और जमात नेताओं की मुलाक़ात को भी इसी रूप में देखा जा रहा है।

चीन ने बांग्लादेश बनने का विरोध किया था।चीन ने सबसे आख़िर में बांग्लादेश को मान्यता दी थी।जमात ने भी बांग्लादेश बनने का विरोध किया था।चीन का बांग्लादेशियों का समर्थन करने की बात खोखली है।चीन अपने देश में बांग्लादेश जैसे प्रदर्शन के बाद किसी तरह का सत्ता परिवर्तन नहीं चाहेगा। 1989 (तियानमेन स्क्वायर) को याद कर लीजिए।जमात भी चीनियों का समर्थन करता है सिवाय वीगर मुसलमानों के।

बांग्लादेश में सेना की बनाई अंतरिम सरकार हिंसक इस्लामिस्ट को खुली छूट दे रही है। इनके पास कोई संवैधानिक अधिकार या बहुमत नहीं है। देश के चीफ़ जस्टिस और पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों को बाहर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक अपील की गई।इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को वापस लेने की बात कही गई, जिसके बाद संसद ने संशोधन कर केयरटेकर सरकार के विकल्प को ख़त्म किया था।इस फ़ैसले को सुनाने वाले चीफ जस्टिस के ख़िलाफ़ हत्या का झूठा मुक़दमा दर्ज किया गया।मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के अंतर्गत हालात और बदतर होंगे।ज़मीन पर हालात भारत विरोधी,महिला विरोधी और लोकतंत्र विरोधी है।

शेख़ हसीना के दौर में बांग्लादेश और पाकिस्तान के संबंध अच्छे नहीं थे। 2018 के चुनाव में पाकिस्तानी उच्चायोग पर बांग्लादेश के चुनाव में दखल देने के आरोप भी लगे थे।
पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने नई अंतरिम सरकार के सदस्यों से मुलाक़ात को अहम बताया और कई क्षेत्रों में सहयोग करने की बात कही।

2022 तक बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ रही थी,लेकिन आज हालात अलग हैं।बांग्लादेश ने आईएमएफ से तीन अरब डॉलर,वर्ल्ड बैंक से 1.5 अरब डॉलर और एशियन डेवलपमेंट बैंक से एक अरब डॉलर की मांग की है।विकास के मामले में पाकिस्तान की तुलना में बांग्लादेश के हालात अलग रहे।ऐसी कई घटनाएं हैं,जिसके आधार पर सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश पाकिस्तान की राह पर चल सकता है,जहां अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है,जहां हिंसक घटनाएं होती रहती हैं,चुनाव में भी सेना की भूमिका रहती है,पाकिस्तान की ही तरह बांग्लादेश में सेना अहम भूमिका में आ गई है।सत्ता के पीछे आर्मी चीफ़ खड़े दिखते हैं।

शेख़ हसीना की सेक्युलर सरकार में हिंसक धार्मिक समूहों पर कार्रवाई की गई।मगर अब हालात दूसरे हैं।अगर सही दिशा में कोशिशें नहीं की गईं तो बांग्लादेश पाकिस्तान का ही दूसरा रूप बन सकता है।बांग्लादेश में जब सत्ता पलटी तो मुजीब-उर रहमान की मूर्तियों को नुक़सान पहुंचाया गया।बांग्लादेश के संस्थापक और शेख़ हसीना के पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान पाकिस्तान को लेकर बहुत सख़्त रहे थे।यहां तक कि शेख़ मुजीब-उर-रहमान ने बांग्लादेश को मान्यता दिए बिना पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो (बाद में प्रधानमंत्री) से बात करने से इनकार कर दिया था।पाकिस्तान भी शुरू में बांग्लादेश की आज़ादी को ख़ारिज करता रहा।बाद में पाकिस्तान के तेवर में अचानक परिवर्तन आया।

फ़रवरी 1974 में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस का समिट लाहौर में आयोजित हुआ।तब भुट्टो प्रधानमंत्री थे और उन्होंने मुजीब-उर-रहमान को भी औपचारिक आमंत्रण भेजा था।पहले मुजीब ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया,लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया।इस समिट के बाद भारत,बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच एक त्रिकोणीय समझौता हुआ। 1971 की जंग के बाद बाक़ी अड़चनों को सुलझाने के लिए तीनों देशों ने नौ अप्रैल, 1974 को समझौते पर हस्ताक्षर किए। 1974 में ही ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मान्यता की घोषणा करते हुए कहा था कि अल्लाह के लिए और इस देश के नागरिकों की ओर से हम बांग्लादेश को मान्यता देने की घोषणा करते हैं।एक प्रतिनिधिमंडल आएगा और हम सात करोड़ मुसलमानों की तरफ़ से उन्हें गले लगाएंगे।

बांग्लादेश को मान्यता देने पर भुट्टो ने कहा था कि मैं ये नहीं कहता कि मुझे यह फ़ैसला पसंद है,मैं ये नहीं कह सकता कि मेरा मन ख़ुश है,यह कोई अच्छा दिन नहीं है,लेकिन हम हक़ीक़त को नहीं बदल सकते।बड़े देशों ने बांग्लादेश को मान्यता देने की सलाह दी,लेकिन हम सुपरपावर और भारत के सामने नहीं झुके,लेकिन ये अहम वक़्त है जब मुस्लिम देश बैठक कर रहे हैं तब हम नहीं कह सकते कि दबाव में हैं।ये हमारे विरोधी नहीं हैं जो बांग्लादेश को मान्यता देने के लिए कह रहे हैं,ये हमारे दोस्त हैं,भाई हैं।

इस बात के क़रीब 50 साल हो चुके हैं और अब शेख़ हसीना के सत्ता से बाहर हो जाने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश एक दूसरे को गले लगाने की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।साथ में चीन भी खड़ा नज़र आ रहा है और इस वजह से भी भारत की चिंताएं और बढ़ गई हैं।

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