कन्नौज।भारतीय संस्कृति में बच्चों को बुढ़ापे की लाठी (सहारा) का दर्जा दिया जाता है,लेकिन आधुनिकता और विलासिता की चकाचौंध ने संस्कार और परपंराओं को तोप से उड़ा कर दिया है।अपनों से धोखा खाए बुजुर्ग कहां जाएं। सरकार भी दो जून की रोटी और जिंदा रहने के लिए भटक रहे बुजुर्ग की सुध नहीं ले रही,जिस उम्र में बुजुर्गों को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए,लेकिन उस उम्र में आराम करने के बजाय मजबूरन बच्चों की हाथ गाड़ी बेचकर जीवन यापन करना पड़ रहा है। इस बेबसी और मजबूरी तक न तो सरकार की योजनाएं पहुंच रही है और न ही दानवीर समाजसेवियों की मदद। बुजुर्ग सडक़ किनारे जिंदगी के बचे दिन गुजारने को मजबूर हैं।
पेशा नहीं मजबूरी है खिलौना बेचना
नगर के मोहल्ला सुभाष नगर में किराये के मकान में गुजर बसर कर रहे 90 वर्षीय बुजुर्ग बाबा कालीचरण अपनी जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए बच्चों की हाथ गाड़ी और खिलौने बेच रहे हैं।नगर के तिर्वा रोड स्थित नई गल्ला मंडी के सामने फुटपाथ पर बैठे बुजुर्ग कालीचरण बताते हैं कि गाड़ी और खिलौने बेचना उनका पेशा नहीं बल्कि मजबूरी है।अपना दर्द बयां करते हुए कालीचरण की आंखे भर आई।
40 साल पहले छूटा पत्नी और बेटे का साथ
कालीचरण ने बताया कि वर्ष 1982 में पत्नी मुन्नी देवी उसके इकलौते बेटे भोलाराम को लेकर बीच रास्ते में ही उसका साथ छोड़ कर दिल्ली चली गई।बेटे ने भी शादी कर ली और दिल्ली में ही रह रहा है।दो पोते हैं जिन्हे बुढ़ापे में खिलाने और उनके साथ समय बिताने का मन होता है,लेकिन अपनों का साथ छूटे लगभग 40 वर्ष हो गए।बुढ़ापा और अकेलापन अक्सर अपनों की याद दिला देता है।
खिलौने बेचकर पेट पालते हैं
बुजुर्ग कालीचरण ने बताया कि जवानी के दिनों में वह पशुपालन करते थे।गांव-गांव फेरी लगाकर कबाड़ की खरीद करते थे।जीवन को चलाने के लिए चौकीदारी का कार्य भी किया,जिससे परिवार का भरण पोषण होता था, लेकिन अब 90 वर्ष की उम्र में शरीर साथ नहीं देता इसलिए सड़क किनारे बच्चों की हाथ गाड़ी और खिलौने बेचकर दो वक्त की रोटी मिलने का इंतजार रहता है।कालीचरण ने बताया कि जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे।किसी प्रकार का नशा नहीं है।सादा जीवन ही लंबी उम्र का राज है।भगवान पर अटूट आस्था ने कई बार हमें नया जीवन दिया।
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
अपनों का साथ छूटने के बाद भी बुजुर्ग कालीचरण ने हिम्मत नहीं हारी,लेकिन उन्हें अफसोस है कि कई बार आवेदन करने के बाद भी सरकार की वृद्धावस्था योजना,राशन कार्ड,आवास या अन्य कोई सुविधा का लाभ कालीचरण को नहीं मिल पा रहा है।सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से वंचित कालीचरण से समाजसेवियों और दानवीरों ने भी नजरें फेर रखी है। कालीचरण की मदद करने के लिए कोई समाजसेवी भी नजर नहीं आता है।खिलौनों की बिक्री न होने पर कभी-कभी कालीचरण को भूखा ही सोना पड़ता है,लेकिन 90 साल की उम्र में भी कालीचरण अंदर जीने और संघर्ष करने का आत्मविश्वास उन्हें टूटने नहीं देता है।
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