यूपी में एनकाउंटर क्या सत्ता की संजीवनी बूटी है, ददुआ-ठोकिया से अतीक के बेटे तक की कहानी
यूपी में एनकाउंटर क्या सत्ता की संजीवनी बूटी है, ददुआ-ठोकिया से अतीक के बेटे तक की कहानी

18 Oct 2024 |  14




लखनऊ।बहराइच में हिंसा के दौरान राम गोपाल मिश्रा को गोली मारने के आरोपी सरफराज और तामील का मुठभेड़ में पुलिस ने एनकाउंटर किया है।पुलिस मुठभेड़ में दोनों ही गंभीर रूप से घायल हुए हैं।यूपी में ददुआ-ठोकिया का एनकाउंटर हो या श्रीप्रकाश शुक्ला और विकास दुबे का हर बार मुठभेड़ के बाद सरकार और उससे जुड़ी पार्टियों को संजीवनी ही मिली है।बहराइच एनकाउंटर पर इसलिए भी सपा मुखिया अखिलेश यादव सवाल उठा रहे हैं।अखिलेश ने कहा है कि सरकार नाकामी छिपाने के लिए एनकाउंटर का सहारा ले रही है।सरकार एक वर्ग को डराकर अपना हित साधना चाहती है।हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब यूपी में एनकाउंटर सत्ता के लिए संजीवनी साबित हुआ है।पहले भी कई ऐसे मौके सामने आए हैं जब एनकाउंटर से सत्तारूढ़ पार्टियों को सीधा फायदा हुआ।

पहला एनकाउंटर श्री प्रकाश शुक्ला का, सीएम को राहत मिली

उत्तर प्रदेश में पहला बड़ा एनकाउंटर गोरखपुर के रहने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला का हुआ था।श्रीप्रकाश शुक्ला उन दिनों यूपी में सबसे बड़ा अपराधी था।कहा जाता है कि उस समय श्रीप्रकाश शुक्ला जिसे मारने की सुपारी लेता था उसे मारकर ही दम लेता था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ले ली थी।इंटेलिजेंस से इसका इनपुट मिलने के बाद कल्याण सिंह हरकत में आए और आनन-फानन में यूपी पुलिस के तेजतर्रार आईपीएस अफसर अजय राज शर्मा के नेतृत्व में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ)के गठन की घोषणा कर दी।यूपी में पहली बार पुलिस के अंदर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया था।एसटीएफ को उस समय सभी आधुनिक मुहैया उपलब्ध कराई गई थी। श्रीप्रकाश शुक्ला को जब इस बात की भनक लगी तो काफी सतर्क रहने लगा।हालांकि एसटीएफ और शुक्ला की छुपम-छुपाई ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई। 28 सितंबर 1998 को शुक्ला का सामना एसटीएफ से हो ही गया।गाजियाबाद के पास श्रीप्रकाश शुक्ला और एसटीएफ के बीच मुठभेड़ शुरू हुई और श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया। श्रीप्रकाश शुक्ला के मारे जाने पर सीएम कल्याण सिंह ने राहत की सांस ली।

ददुआ-ठोकिया को मारकर मायावती ने जमाई धाक

मायावती 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की कमान संभाली।यूपी की कमान संभालते ही मायावती ने उस समय के खूंखार डकैत ददुआ-ठोकिया को निशाने पर ले लिया। ददुआ-ठोकिया को निशाने पर लेने का दो कारण था।कहा जाता है कि ददुआ-ठोकिया आंतरिक तौर पर मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा के लिए काम करते थे।दूसरा कारण था मायावती की क्राइम को लेकर जीरो टॉलरेंस पॉलिसी थी। मायावती ने ददुआ-ठोकिया के खिलाफ सारे घोड़े एक साथ खोल दिए।सीएम से आदेश मिलने के बाद एसटीएफ ने ददुआ-ठोकिया को खोजना शुरू कर दिया।ददुआ-ठोकिया का ठिकाना यूपी और एमपी के चंबल में था।लंबी जद्दोजेहद के बाद पहले ददुआ और फिर ठोकिया एसटीएफ के एनकाउंटर में मारा गया।ददुआ-ठोकिया के एनकाउंटर को मायावती ने जमकर भुनाया।इस एनकाउंटर के बाद 2008 में मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए।बसपा ने चंबल में इसे मुद्दा बनाया।बसपा को एमपी की सात सीटों पर जीत मिली। 2003 में बसपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा बुंदेलखंड की एक सीटी जीतने में कामयाब रही।

विकास दुबे के एनकाउंटर से भाजपा को फायदा

जुलाई 2020 में पुलिस पर हमला करने वाला कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे मुठभेड़ में मारा गया।विकास दुबे का मामला दो कारणों से सुर्खियों में था।एक तो विकास दुबे सियासी तौर पर सक्रिय था और कानपुर के इलाके में उसका सिक्का चलता था।दूसरा विकास दुबे ने अपने घर पर आए पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी।विकास दुबे के एनकाउंटर ने यूपी की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी।इस एनकाउंटर के दो साल बाद यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए।इस चुनाव में कानपुर जोन की 27 में से 22 सीटों पर भाजपा को जीत मिली। 2017 में यहां की 20 सीटों पर ही भाजपा को जीत मिली थी।कानपुर जोन में भाजपा की सीटों की संख्या में तब बढ़ोतरी हुई जब पूरे यूपी की संख्या में गिरावट देखी गई।

कुख्यात माफिया अतीक अहमद के बेटे असद का एनकाउंटर

फरवरी 2023 में प्रयागराज में राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या हो जाती है। उमेश पाल हत्याकांड में कुख्यात माफिया अतीक अहमद और उसके बेटे असद का नाम आता है। उमेश पाल हत्याकांड के बाद असद फरार हो जाता है।सियासी बवाल मचने के बाद पुलिस और यूपी एसटीएफ हरकत में आती है और असद को खोजने निकल जाती है।झांसी के पास अप्रैल 2023 में यूपी एसटीएफ को असद के लोकेशन के बारे में पता चलता है।यूपी एसटीएफ जब असद को पकड़ने जाती है तो मुठभेड़ शुरू हो जाती है। इस मुठभेड़ में असद मारा जाता है।असद के मुठभेड़ के कुछ दिन बाद कुख्यात माफिया अतीक अहमद और उसका भाई माफिया अशरफ की भी हत्या हो जाती है।फूलपुर में अतीक का सियासी दबदबा रहा है।फूलपुर से अतीक सांसद भी रहे।
2024 के लोकसभा चुनाव में प्रयागराज और उसके आसपास के जिले कौशांबी और प्रतापगढ़ में भाजपा बुरी तरह हार जाती है,लेकिन फूलपुर में भाजपा को जीत मिलती है।

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