बसपा मुखिया मायावती की ये तीसरी कसम टूटेगी या बचेगी,ये थीं पिछली कसमें:धनंजय सिंह
बसपा मुखिया मायावती की ये तीसरी कसम टूटेगी या बचेगी,ये थीं पिछली कसमें:धनंजय सिंह

12 Oct 2024 |  71




लखनऊ।आज से लगभग सोलह साल पहले बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं।तब मायावती ने एक कसम खायी थी।बसपा की बड़ी रैली के दौरान मंच से मायावती ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार का नहीं होगा।मायावती ने कहा था कि जो भी उनके बाद पार्टी संभालेगा वो उमर में उनसे पंद्रह-बीस साल छोटा होगा।

बसपा मुखिया मायावती ने तब ये भी बताया था कि उनका राजनैतिक वारिस उनकी ही जाति का होगा।मायावती ने मंच से ये कहकर चौंका दिया था कि उन्होंने उसका नाम लिखकर एक लिफ़ाफे में रख दिया है।ये बात साल 2008 की है। तब देश भर से बसपा के नेता और कार्यकर्ता राजधानी लखनऊ के रमा बाई मैदान में जुटे थे।

मगर मायावती ने अपनी ये कसम पिछले साल तोड़ दी। मायावती ने अपने छोटे भाई आनंद के बेटे आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया।मायावती ने आकाश आंनद को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था।इस तरह से मायावती ने पंद्रह साल पहले जो कहा था उससे पलटी मार गईं।परिवारवाद का विरोध करने वाली मायावती ने आख़िरकार अपने परिवार पर ही भरोसा किया।

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा शून्य पर आकर सिमट गई।या यूं कहें कि बसपा का खाता नहीं खुला। लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच में ही मायावती ने आकाश आनंद को इमेच्योर बता दिया।फिर मायावती ने कहा कि आकाश उनके राजनैतिक वारिस बनने के काबिल नहीं है, लेकिन फिर जून महीने में मायावती ने फिर से आकाश आनंद को सारी ज़िम्मेदारी दे दी।अब आकाश आनंद ही मायावती के आंख और कान बने हुए हैं।

मायावती की पहली कसम थी मुलायम सिंह यादव से कभी भी हाथ न मिलाने की।गेस्ट हाउस कांड के बाद ये फ़ैसला हुआ था।ये तब हुआ था जब बसपा संस्थापक काशीराम ने मुलायम सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और मुलायम की सरकार गिर गई थी।फिर मायावती मुख्यमंत्री बनीं।

गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सिंह यादव और मायावती एक दूसरे के कट्टर विरोधी बन गए।तब मायावती ने क़सम खाई थी कि वे कभी समाजवादी पार्टी से कोई संबंध नहीं रखेंगी।ये बात 1995 की है।ठीक 24 साल बाद मायावती ने बसपा समर्थकों से किया ये वादा भी तोड़ दिया।अखिलेश यादव से मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया।तब बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थीं।

मायावती ने तरह-तरह के प्रयोग कर लिए। या फिर यूं कहें कि हर दांव आज़मा लिया,लेकिन सब फेल रहा।हरियाणा विधानसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला,जबकि मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन भी किया था।बसपा ने पंजाब विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल से समझौता किया था। पंजाब भी बसपा का प्रदर्शन ख़राब रहा।

अब मायावती ने फ़ैसला किया है कि वो कभी भी क्षेत्रीय दलों से कोई गठबंधन नहीं करेंगी। मायावती का कहना है कि उनके वोट तो ट्रांसफ़र हो जाते हैं,लेकिन सहयोगी पार्टी का वोट उन्हें नहीं मिलता।पता नहीं मायावती अब अपनी इस तीसरी कसम पर कब तक टिकी रहती हैं।

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