
नई दिल्ली।केंद्र शासित राज्य दिल्ली में विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा इस बार असर दिखा पाएगा या फिर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की सियासी रणनीति एक बार फिर सफल होगी।कांग्रेस नेता राहुल गांधी के कामयाब होने के बारे में शनिवार को मतगणना के बाद खुलासा होगा।बीते दो विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी सरकार नहीं बना पाई,जबकि केजरीवाल का मैजिक चलता रहा और आम आदमी पार्टी ने भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। दूसरी ओर कांग्रेस इन चुनावों में लगातार हाशिए पर ही रही है।
आप ने मोदी लहर में भी मारी बाजी
भाजपा के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद कई राज्यों में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया और मोदी के नाम पर जीत दर्ज की, लेकिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव का समीकरण हमेशा अलग रहा है। सियासी पंडितों का मानना है कि अगर इस बार भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ता है तो यह संकेत होगा कि मोदी की लोकप्रियता का असर राज्य स्तरीय चुनावों में सीमित हो सकता है।इसके विपरीत यदि भाजपा इस बार मजबूत प्रदर्शन करती है तो यह संकेत होगा कि केंद्र सरकार की नीतियां और मोदी का करिश्मा अब दिल्ली की जनता को भी प्रभावित कर रहा है।भाजपा के चुनाव प्रचार की शुरूआत पीएम मोदी ने की थी।पीएम ने पांच जनसभा कर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा था।
दिल्ली को इस बार किस पर भरोसा
आम आदमी पार्टी ने पिछले दो चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को शिकस्त दी थी।आप को दिल्ली में अभूतपूर्व सफलता मिली थी।आप के शासनकाल में शिक्षा,स्वास्थ्य और मुफ्त सुविधाओं पर जोर दिया गया,जिसने आप को जनता के बीच लोकप्रिय बनाए रखा। हालांकि इस बार भाजपा ने आक्रामक प्रचार अभियान चलाया और आप सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की।खासकर आप सरकार में हुए भ्रष्टाचार और विभिन्न मामलों में सरकार की नाकामी और अनेक वादे पूरे नहीं करने के मुद्दों को उठाते हुए भाजपा ने मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी दिल्ली की जनता आप की योजनाओं पर भरोसा जताती है या भाजपा के एजेंडे को स्वीकार करती है।
पूरी ताकत से कांग्रेस ने लड़ा चुनाव
दिल्ली की सियासत में कभी जबरदस्त पकड़ रखने वाली कांग्रेस की बीते दो चुनाव में ये पकड़ पूरी तरह से ढीली हो गई थी। वर्ष 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी।कांग्रेस का वोट शेयर भी तेजी से गिरा था।इस बार कांग्रेस ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा और राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने लगातार प्रचार किया। अगर कांग्रेस इस चुनाव में कुछ सीटें हासिल करने में सफल होती है तो यह उसके पुनरुत्थान की शुरुआत हो सकती है,लेकिन अगर कांग्रेस फिर से शून्य पर सिमट जाती है तो यह उसके लिए एक बड़ा झटका होगा।
चुनाव में इस बार तस्वीर कुछ बदली-बदली सी आई नजर
विधानसभा चुनाव में इस बार की तस्वीर कुछ बदली-बदली सी नजर आई।पिछले चुनावों में जहां एकतरफा लहर देखने को मिलती थी।इस बार चुनावी रणभूमि में ऐसा कुछ साफ नजर नहीं आया।चुनाव प्रचार के दौरान किसी खास पार्टी या नेता की स्पष्ट लहर दिखाई नहीं दी,जिससे मुकाबला रोचक रहा।आम आदमी पार्टी पहली बार कुछ दबाव में नजर आई। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी,जो पिछले दो विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत से सत्ता में आई थी,इस बार थोड़ी सतर्क और रक्षात्मक मुद्रा में दिखी।इसका कारण उसकी सरकार पर भ्रष्टचार के आरोप लगने और उनके नेताओं के जेल में बंद होने समेत कई अन्य मुद्दों पर बढ़ता विपक्ष का दबाव और आंतरिक कलह रही।
भाजपा का रुख रहा आक्रामक
भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपनी रणनीतियों में बदलाव किए और इस बार अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने की पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरे।भाजपा की बात करें तो इस बार भी रुख आक्रामक रहा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अन्य नेताओं ने धुआंधार रैलियां कीं और प्रचार के जरिए दिल्ली की जनता को भाजपा के पक्ष में मोड़ने का प्रयास किया। दूसरी ओर कांग्रेस इस बार पहले से अधिक सक्रिय नजर आई। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने खुद मोर्चा संभाला और लगातार रैलियां और जनसभाएं कीं। कांग्रेस का फोकस उन पारंपरिक वोट बैंक पर रहा, जो पिछले कुछ चुनावों में आप और भाजपा के बीच बंट गया था।
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