झुलस न जाए शिव के पैर,इस गांव में 5 हजार साल से नहीं हुआ होलिका दहन
झुलस न जाए शिव के पैर,इस गांव में 5 हजार साल से नहीं हुआ होलिका दहन

14 Mar 2025 |  15





सहारनपुर।गुरुवार को उत्तर प्रदेश समेत सभी हिंदी भाषी राज्यों में होलिका दहन किया गया,लेकिन पश्चिमी यूपी में एक गांव ऐसा भी है जहां पांच हजार साल से होलिका दहन नहीं हुआ है।यूपी की पश्चिमी सीमा पर बरसी गांव में होलिका दहन नहीं होने की सदियों पुरानी परंपरा आज भी कायम है।सहारनपुर शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर नानोता क्षेत्र के बरसी गांव के लोग अपने पूर्वजों की इस परंपरों को आज भी जारी रखे हुए हैं।गांव वालों में मान्यता रही है कि गांव के बीचों-बीच स्थित एक महाभारत कालीन भगवान शिव का मंदिर है।इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव खुद विराजमान हैं और यहां तक कि वह इसकी सीमा के भीतर विचरण भी करते हैं।लोग मानते हैं कि इस डर से सालों से होलिका नहीं जलाई जाती कि आग जलाने से जमीन गर्म हो जाएगी और भगवान शिव के पैर झुलस जाएंगे। यह मान्यता पीढ़ियों से चली आ रही है,जिसके कारण एक अनूठी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा आज भी जारी है।

दुर्योधन ने रातों-रात करवाया था मंदिर निर्माण

ग्राम प्रधान आदेश कुमार बताते हैं कि हमारे पूर्वजों ने इस परंपरा को अटूट विश्वास के साथ कायम रखा है और हम उनके पदचिन्हों पर चलते रहेंगे।स्थानीय लोगों के अनुसार गांव में स्थित इस मंदिर का निर्माण दुर्योधन ने महाभारत के युद्ध के दौरान रातों-रात करवाया था।पौराणिक मान्तया है कि जब अगली सुबह भीम ने इसे देखा तो उन्होंने अपनी गदा से इसके मुख्य द्वार को पश्चिम की ओर मोड़ दिया। ऐसा दावा भी किया जाता है कि यह देश का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जो पश्चिममुखी है।

कुरुक्षेत्र जाते समय इस गांव से गुजरे थे भगवान कृष्ण

गांव वाले इस तरह की एक बात भी बताते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र जाते समय इस गांव से गुजरे थे और इसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर उन्होंने इसकी तुलना पवित्र बृज भूमि से की थी।देशभर में जहां होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हुए होली उत्सव के अनिवार्य हिस्से के रूप में शामिल किया गया है वहीं बरसी गांव ने स्वेच्छा से इस प्रथा को छोड़ दिया है। हालांकि गांव वाले होलिका दहन में भाग लेने के लिए आसपास के गांवों में जाते हैं और अपने गांव में रंगों के त्योहार को भक्ति और खुशी के साथ परंपरागत तरीके से ही मनाते हैं।

5 हजार वर्षों से चली आ रही परंपरा

बरसी गांव के रवि सैनी बताते हैं कि यहां कोई भी भगवान शिव की साक्षात उपस्थिति को नहीं मानने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है।रवि बताते हैं कि माना जाता है कि यह परंपरा लगभग 5 हजार वर्षों से चली आ रही है और आने वाली पीढ़ियों में भी जारी रहेगी।मंदिर के पुजारी नरेंद्र गिरि ने बताते हैं कि इस शिव मंदिर की महिमा दूर-दूर तक है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं।महाशिवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां अभिषेक करने आते हैं। नवविवाहित जोड़े भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं।

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