चित्रकूट में लगा गधों का मेला,सदियों पुरानी परंपरा में इस बार दिखी कम रौनक
चित्रकूट में लगा गधों का मेला,सदियों पुरानी परंपरा में इस बार दिखी कम रौनक

21 Oct 2025 |   53



 

चित्रकूट। प्रभु श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट में दीपदान मेले के चौथे दिन मंदाकिनी नदी के तट पर गधों का मेला लगा। इस मेले में स्थानीय के अलावा कई राज्यों से कारोबारी और खरीदार पहुंचे, लेकिन इस बार मेले में अपेक्षा से कम संख्या में जानवर आने से खरीदारों में भी मायूसी रही।साफ-सफाई का अभाव होने से कारोबारी काफी परेशान भी रहे।

चित्रकूट में औरंगजेब के समय से लग रहा है गधों का मेला

चित्रकूट में गधों का मेला मुगल शासक औरंगजेब के समय से लग रहा है।दीपदान के दूसरे दिन मंदाकिनी नदी तट पर गधों का बाजार सजता है।मेले में मध्य प्रदेश,राजस्थान,बिहार, हरियाणा आदि राज्यों से कारोबारी और खरीदार पहुंचते हैं। अधिकतर तंदुरुस्त और अच्छे गधों को अच्छे दाम से बेचने के लिए कारोबारी गधों का नाम फिल्मी सितारों का रख लेते है। 

जानें मेला आयोजक ने क्या कहा

मेला आयोजक रमेश पांडेय कहते हैं कि अब नया जमाना आ गया है।समय के साथ काफी बदलाव हुआ है।खच्चरों की खरीदारी ज्यादातर वह लोग करते हैं, जो निर्माण सामग्री ढोते हैं।अब ज्यादातर युवा वर्ग इस तरह के कार्यों से मुंह मोड़ रहा है,जिससे मेला हर साल कमजोर होता जा रहा है।एक दशक पहले तक कई हजार की संख्या में गधे बिक्री के लिए दूसरे प्रांतों से आते रहे हैं,लेकिन मौजूदा समय पर अब यह संख्या सिमटकर सैकड़ों में रह गई है।कारोबारी भी बहुत कम आने लगे हैं, क्योंकि अच्छे रेट के साथ बिक्री का अभाव हो गया है। 

जानें कारोबारियों ने क्या कहा 

कौशांबी से आए कारोबारी गणेश चौधरी का कहना कि यहां पर साफ सफाई का बहुत अभाव है,मेला में व्यवस्थाएं कुछ भी नहीं की जा रही है,गंदगी की वजह से खड़ा होना मुश्किल हो रहा है।इसके अलावा उनके जानवर भी सही मूल्य पर नहीं बिक पा रहे हैं।बांदा से खरीदारी करने आए चुन्नीलाल ने कहा कि उनके पास पहले से भी 7-8 जानवर हैं।अक्सर वह कहीं पर भी अगर गधा मेला लगता है तो जानवर खरीदने पहुंचते है।बाराबंकी के देवाशरीफ में भी मेला लगता है।वहां की अपेक्षा यहां पर करीब पांच हजार रुपये प्रति जानवर महंगा है। उसने एक जानवर साढ़े पंद्रह हजार रुपये का खरीदा है,लेकिन नजदीक होने की वजह से ले लिया है। इसके अलावा यहां पर इस बार मेला में जानवर भी कम संख्या में आए हैं।

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