
नई दिल्ली।जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन घाटी में पर्यटकों पर हमले से कुछ दिन पहले खुफिया एजेंसियों ने पर्यटकों को निशाना बनाए जाने की आशंका जताई थी। इनपुट पर तलाशी अभियान भी चलाया गया। 22 अप्रैल को ही अभियान बंद हुआ और उसी दिन हमला हो गया।
पर्यटकों को निशाना बनाए जाने की थी आशंका
खुफिया एजेंसियों ने पहलगाम आतंकी हमले से पहले जबरवान की पहाड़ियों के दामन में स्थित होटलों में ठहरे पर्यटकों को निशाना बनाए जाने की आशंका जताई थी। इसके बाद श्रीनगर के बाहरी इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई। दाछिगाम,निशात और आसपास के इलाकों में श्रीनगर में डेरा डाले शीर्ष पुलिस अधिकारियों की देखरेख में तलाशी अभियान चलाए गए।बीते साल अक्तूबर में सोनमर्ग के गगनगीर में एक निर्माण स्थल पर हुए आतंकी हमले के बाद इन इलाकों पर ध्यान गया और सुरक्षाबलों ने गश्त बढ़ा दी थी। इस हमले में एक डॉक्टर समेत सात लोग मारे गए थे। यह इलाका जबरवान रेंज के दूसरी तरफ स्थित है, जहां से श्रीनगर शहर दिखता है।
दो हफ्ते चला तलाशी अभियान
दो सप्ताह के अभियान के बावजूद सुरक्षा बलों ने खुफिया जानकारी के आधार पर श्रीनगर के बाहरी इलाकों में व्यापक तलाशी अभियान चलाया,लेकिन इन प्रयासों से कोई सफलता नहीं मिली। 22 अप्रैल को तलाशी अभियान बंद कर दिया गया और उसी दिन आतंकियों ने पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाया।
पीएम मोदी की यात्रा के दौरान नापाक मंसूबों को आतंकी देना चाहते थे अंजाम
ऐसे इनपुट थे कि आतंकी कटड़ा से श्रीनगर के लिए पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान इस तरह के नापाक मंसूबों को अंजाम देना चाहते हैं। हालांकि कटड़ा क्षेत्र में तेज हवा चलने के पूर्वानुमानों के कारण प्रधानमंत्री की 19 अप्रैल को होने वाली यात्रा को स्थगित कर दिया गया था।अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया कि मौसम की स्थिति स्थगन का एकमात्र कारण है,लेकिन जल्द ही नए उद्घाटन की तारीखों की घोषणा होने की उम्मीद है। अधिकारियों ने कहा कि सीमा पार बैठे सरकारी और गैर-सरकारी तत्व कभी नहीं चाहते कि पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के दृश्य अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करें और इसलिए उन्होंने इस तरह की बर्बर हत्याओं के साथ इस घटना को फीका करने की साजिश रची होगी।
दो स्थानीय आतंकी पहले से ही पर्यटकों के साथ मिल गए थे,साजिशन सबको फूड कोर्ट की ओर ले गए
पहलगाम आतंकी हमले पर अधिकारियों ने कहा कि अब तक जो बात सामने आ रही है उससे पता चला है कि दो स्थानीय आतंकी पहले से ही पर्यटकों के साथ मिल गए थे। जैसे ही पहली गोली चली उन्होंने पर्यटकों को एक फूड कोर्ट परिसर में इकट्ठा कर लिया, जहां दो अन्य पाकिस्तानी आतंकी थे। इसके बाद 26 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
कवचभेदी गोलियों समेत स्नाइपर राइफल इस्तेमाल कर रहे आतंकी
पिछले दिनों मुठभेड़ स्थलों से एम-सीरीज राइफल, स्नाइपर राइफल और कवचभेदी गोलियों जैसे उन्नत हथियारों की बरामदगी हुई है।संदेह है कि ये अफगानिस्तान में नाटो सैनिकों के बचे हुए हथियार और गोला-बारूद हैं।अधिकारियों ने इस सबको देखते हुए जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के बदलते तौर-तरीकों पर भी रिपोर्ट की है।
पर्यटकों के आगमन को केवल शांति के प्रतीक के रूप में देखने के खिलाफ दी चेतावनी
अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों के आगमन को केवल शांति के प्रतीक के रूप में देखे जाने के खिलाफ भी चेतावनी दी।अधिकारियों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अपने कार्यकाल के दौरान पर्यटकों के आगमन को सामान्य स्थिति के सूचकांक के रूप में इस्तेमाल किया था। उनके बयान के तुरंत बाद मई 2006 में गुजरात के पर्यटकों को मुगल गार्डन ले जा रही बस पर श्रीनगर में हमला किया,जिसमें चार पर्यटक मारे गए और छह अन्य घायल हो गए थे।
पर्यटन को आर्थिक गतिविधि के रूप में देखा जाना चाहिए
अधिकारियों के अनुसार पर्यटन को मुख्य रूप से एक आर्थिक गतिविधि के रूप में देखा जाना चाहिए न कि सामान्य स्थिति को मापने के लिए एक बैरोमीटर के रूप में।बैसरन को पर्यटकों के लिए खोलने की मंजूरी नहीं दिए जाने की रिपोर्टों के बारे में अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि अमरनाथ यात्रा या भारी बर्फबारी की अवधि को छोड़कर यह क्षेत्र पूरे वर्ष खुला रहता है।जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बैसरन के लिए एक निविदा जारी की थी, जिसे पिछले अगस्त में दक्षिण कश्मीर के एक व्यक्ति को तीन साल की अवधि के लिए 3 करोड़ रुपये में ठेके पर दिया गया था। तब से पूरे बैसरन मैदान को बाड़ लगा दिया गया है और यहां तक कि जिपलाइन की सुविधा भी है।
आतंकी विरोधी अभियानों में इस्तेमाल घरों को विस्फोट से उड़ाने पर कहा-इसे सरकार के अनुरोध पर रोक दिया गया
हाल ही में आतंकवाद विरोधी अभियानों में इस्तेमाल किए गए घरों को विस्फोट से उड़ाने पर अधिकारियों ने कहा कि इसे जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित सरकार के अनुरोध पर रोक दिया गया था। नई दिल्ली को 22 अप्रैल को पहलगाम हत्याकांड के बाद पूरे कश्मीर घाटी में स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शनों पर ध्यान देने की सलाह दी गई थी, जो नई दिल्ली में निर्भया मामले के दौरान देखे गए सार्वजनिक आंदोलनों की याद दिलाते थे।
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