मऊ सदर में सपा से अधिक टेंशन भाजपा को,माफिया मुख्तार अंसारी की सियासी विरासत पर संकट: धनंजय सिंह 
मऊ सदर में सपा से अधिक टेंशन भाजपा को,माफिया मुख्तार अंसारी की सियासी विरासत पर संकट: धनंजय सिंह 

02 Jun 2025 |   35



 

म‌ऊ।उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की हाई प्रोफाइल विधानसभा मऊ सदर खाली हो गई है।मऊ सदर से विधायक रहे अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द हो गई है।जरायम की दुनिया के बेताज बादशाह रहे माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को भड़काऊ भाषण मामले में दो साल की होने के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई है।

बता दें कि अब्बास अंसारी ने 2022 विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर मऊ सदर से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी।एमपी-एमएलए कोर्ट ने अब्बास को चुनाव के दौरान अधिकारियों को देख लेने की धमकी के मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई है।दोषी करार दिए जाने और सजा सुनाए जाने के बाद विधानसभा सचिवालय ने अब्बास की सीट को रिक्त घोषित कर दिया है।

अब्बास की सदस्यता रद्द होने के बाद उपचुनाव की चर्चा हुई तेज

अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने के बाद म‌ऊ सदर सीट खाली हो गई है,जिससे अब उपचुनाव की चर्चा तेज हो गई है। भारतीय जनता पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी दोनों ही म‌ऊ सदर सीट पर दावा जता रहे हैं।इसके साथ ही समाजवादी पार्टी भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है।अंसारी परिवार के लिए म‌ऊ सदर सीट हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है, इसलिए यह उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है।

म‌ऊ सदर से माफिया मुख्तार अंसारी लगातार पांच बार रहे विधायक 

जयराम की दुनिया का बेताज बादशाह रहे माफिया मुख्तार अंसारी 1996 से लेकर 2017 लगातार पांच बार मऊ सदर से विधायक रहे हैं। 2022 में मुख्तार अंसारी की सियासी विरासत को बेटे अब्बास अंसारी ने संभाली थी। सपा-सुभासपा के गठबंधन में अब्बास अंसारी ने म‌ऊ सदर से जीत हासिल की थी,लेकिन 2022 के चुनाव प्रचार के दौरान अब्बास ने अधिकारियों के हिसाब-किताब करने का बयान दिया था।इस मामले में अब्बास को दो साल की सजा सुनाई गई है,जिससे उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है।

मऊ सदर से बनेंगे सियासी समीकरण

उत्तर प्रदेश में मऊ सदर के बहाने सियासत के न‌ए समीकरण गढ़े जाएंगे।सत्ताधारी एनडीए के बीच मऊ सदर को लेकर सियासी दावेदारी शुरू हो गई।सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर अब्बास अंसारी को अपना विधायक बताकर मऊ सदर पर दावा ठोंक रहे हैं।वहीं म‌ऊ सदर पर भाजपा की भी नजर है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और सुभासपा का गठबंधन था।सुभासपा ने मऊ सदर से चुनाव लड़ा था। भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतारा था।

अब ओपी राजभर भाजपा के साथ,म‌ऊ सदर पर ठोक रहे हैं दावा 

अब ओम प्रकाश राजभर भाजपा के साथ हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं।राजभर मऊ सदर पर अपना दावा ठोक रहे हैं।सपा भी अब अपना प्रत्याशी उतारेगी,कांग्रेस और बसपा उपचुनाव से दूर है।मऊ सदर से अगर कांग्रेस और बसपा अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है तो सपा और एनडीए के घटक दल से सीधा मुकाबला होगा।हालांकि भाजपा और सुभासपा में से कौन लड़ेगा,ये तय नहीं है,लेकिन एक बात जरूर है कि यह म‌ऊ सदर भाजपा से अधिक सपा और सुभासपा के लिए अनुकूल रही है।

राजभर ने मऊ सीट पर ठोका दावा

मऊ सदर सीट के रिक्त होते ही उपचुनाव की चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।मऊ सदर से अब्बास अंसारी 2022 में सुभासपा कोटे से ही विधायक चुने गए थे।ऐसे में सुभासपा हर हाल में मऊ सदर अपने खाते में रखना चाहती है।सुभासपा के मुखिया योगी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने साफ-साफ कहा है कि मऊ सीट हमारी है और 2022 में सुभासपा ने जीत हासिल की थी,हमारी पार्टी ही वहां से चुनाव लड़ेंगी,हमारा विधायक (अब्बास अंसारी ) अगर हाई कोर्ट जाता है तो हम उसके साथ हैं,पार्टी अब्बास अंसारी के साथ खड़ी है।

ओपी राजभर अपने कोटे की सीट को बचाने के लिए लगा रहे हैं पूरा दमखम 

ओम प्रकाश राजभर अपने कोटे की म‌ऊ सदर सीट को बचाने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं।उपचुनाव का बनते हालात को देखते हुए गठबंधन के हिसाब से म‌ऊ सदर को अपने पाले में करने का दांव भी आजमा रहे हैं। 2017 में भाजपा के साथ रहते हुए सुभासपा ने ही मऊ सदर पर अपना प्रत्याशी उतारा था।अब अब्बास अंसारी की सदस्यता जाने के बाद मऊ सदर पर राजभर अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं।हालांकि म‌ऊ सदर पर भाजपा की बात करें तो भाजपा ने इस मामले को केंद्र के भरोसे छोड़ दिया है।

मऊ सदर में भाजपा की रणनीति

भाजपा ने 2022 में म‌ऊ सदर से अशोक सिंह को चुनाव लड़ाया था।अब्बास अंसारी 38,116 वोटों से चुनाव जीत गए थे।अब अब्बास की सदस्यता जाने के बाद भाजपा मऊ सदर में कमल खिलाने का सपना देखने लगी है।यही कारण है कि 31 मई को अब्बास को सजा हुई और सोमवार तक का इंतजार नहीं किया गया।विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने रविवार को विधानसभा सचिवालय खुलवाकर मऊ सदर को रिक्त घोषित करने का फरमान जारी कर दिया गया,ऐसे में साफ है कि भाजपा की नजर मऊ सदर पर किस तरह से है।

माफिया मुख्तार का हो चुका है निधन

माफिया मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है।उनके बेटे अब्बास अंसारी को सजा हो चुकी है,ऐसे में अब भाजपा को मऊ सदर में कमल खिलाने का मौका नजर आ रहा है। 2024 के बाद जिस तरह से भाजपा ने निषाद पार्टी के कोटे वाले मझवां सीट पर चुनाव लड़कर जीत का परचम लहराया,कुंदरकी मुस्लिम बहुल सीट पर भी भाजपा ने उपचुनाव में जीत का परचम लहराया थी।इसी आधार पर भाजपा मऊ सदर पर भी कब्जा करने का सपना देख रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के टारगेट पर म‌ऊ सदर हमेशा से रहा है।अब जब म‌ऊ सदर खाली है तो उपचुनाव लड़कर कमल खिलाने का सपना संजोये हुए हैं।

अंसारी परिवार की सियासी विरासत पर संकट

माफिया मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है। मुख्तार 1996 से लेकर 2017 तक विधायक रहे। 2022 में मुख्तार की सियासी विरासत को उनके बेटे अब्बास अंसारी ने संभाला और मऊ सदर से विधायक चुने गए।मुख्तार ने म‌ऊ सदर सीट को अपनी परंपरागत सीट में तब्दील किया है अब उस पर अंसारी परिवार को कब्जा जमाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।अब्बास सजा होने से पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।उपचुनाव ही नहीं 2027 के चुनाव लड़ने पर भी संकट मंडरा रहा है।

अफजाल पर दर्ज हैं पांच आपराधिक मामले 

मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी पर पांच आपराधिक मामले दर्ज हैं।अफजाल गाजीपुर से लगातार दूसरी बार सांसद हैं।गैंगस्टर एक्ट के एक मामले में अफजाल को चार साल की सजा हुई थी,सदस्यता भी चली गई थी, लेकिन उच्च अदालत से राहत मिल मिलने के बाद सदस्यता बची है।मुख्तार की पत्नी फरार घोषित हैं,अब उपचुनाव में मुख्तार की सियासी विरासत को बचाने के लिए उनके छोटे बेटे उमर अंसारी उतरेंगे।हालांकि उमर लगातार सक्रिय हैं और अगर चुनाव लड़ने का मन बनाते हैं तो सपा से उनका टिकट कन्फर्म हो सकता है।

मऊ में सपा से ज्यादा टेंशन भाजपा को 

मऊ सदर सपा के लिए काफी मुफीद मानी जाती है और भाजपा के लिए मुश्किल भरी रही है।मऊ सदर मुस्लिम बहुल सीट है।भाजपा कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकी।यहां पहला चुनाव 1957 में हुआ था,कांग्रेस को जीत मिली थी,1968 में जनसंघ को जीत मिली,लेकिन एक साल बाद ही 1969 में भारतीय क्रांति दल ने जीत दर्ज की,1974 में सीपीआई ने जीत दर्ज की थी.सीपीआई एम जीतती रही, लेकिन 1989 में बसपा ने जीत दर्ज की थी।मुस्लिम बहुल सीट होने की वजह से 1991 में भाजपा ने मुख्तार अब्बास नकवी को उतारा,लेकिन वो हार गए,सीपीआई के इम्तियाज अहमद ने बहुत मामूली वोटों से जीत दर्ज की थी,उसके बाद 1996 में मुख्तार अंसारी ने मऊ सदर को अपनी कर्मभूमि बनाया और बसपा से चुनावी मैदान में उतरे जीत दर्जकर विधानसभा पहुंचे।मुख्तार बसपा से दो बार,दो बार निर्दलीय और एक बार अपनी कौमी एकता दल से विधायक रहे। 2022 में मुख्तार अंसारी की जगह अब्बास अंसारी चुनाव लड़े और सुभासपा से विधायक बने थे।

पांच बार मुख्तार अलग-अलग पार्टियों से बने विधायक 

पांच बार मुख्तार अंसारी अलग-अलग पार्टियों से विधायक बने। 2022 में अब्बास अंसारी को जीत तो मिली,लेकिन हेट स्पीच मामले में सजा होने से सदस्यता रद्द हो गई।यहां के सियासी समीकरण से माफिया मुख्तार अंसारी का दबदबा बना रहा।भाजपा ने कई प्रयोग किए,लेकिन सफल नहीं हो पाई।राम मंदिर का माहौल रहा हो या फिर मोदी राज भाजपा का जादू मऊ सदर में नहीं चला।सपा के लिए म‌ऊ सदर काफी मुफीद इसलिए माना जा रहा है कि अंसारी परिवार उनके साथ है।मुस्लिम वोटों का समीकरण भी उनके पक्ष में है।

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