विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में होगा विधानसभा चुनाव,जानें कैसा है माहौल
विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में होगा विधानसभा चुनाव,जानें कैसा है माहौल

19 Aug 2024 |  46





जम्मू-कश्मीर।विशेष दर्जा ख़त्म करने के बाद पहली बार केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं।विधानसभा चुनाव लगभग एक दशक के बाद होने जा रहा है।साल 2019 में केंद्र सरकार ने विशेष दर्जा ख़त्म कर जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया था।लद्दाख को भी अलग केंद्र शासित राज्य बनाया गया। जम्मू-कश्मीर में ये विधानसभा चुनाव तीन चरणों में होंगे।

जम्मू-कश्मीर में बीते दो दशकों में इस बार का चुनाव सबसे कम समय में कराया जा रहा है।जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का आख़िरी चुनाव साल 2014 में हुआ था। साल 2018 में भाजपा और पीडीपी के गठबंधन वाली सरकार गिर गई थी।
उस समय आपसी मतभेद के चलते भाजपा ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था।सरकार गिरने के बाद जम्मू-कश्मीर क़रीब छह सालों तक केंद्र सरकार के शासन में रहा।इस समय जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल का शासन है और मनोज सिन्हा उपराज्यपाल हैं।

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल लंबे समय से विधानसभा चुनाव कराने की मांग कर रहे थे।भारत निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को दिल्ली में एक प्रेस सम्मेलन में चुनाव की घोषणा करते हुए बताया कि जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं की संख्या 87.09 लाख है।

विधानसभा का चुनाव जम्मू-कश्मीर में कई तब्दीलियों के बाद होने जा रहा है।साल 2022 में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन करके सात नई सीटें जोड़ी गई हैं और अब 83 सीटों की जगह नई विधानसभा में 90 सीटें होंगी। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल राज्य का दर्जा वापस देने की मांग कर रहे हैं। 2019 में विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में एक लंबे समय तक कर्फ्यू और प्रतिबंध लगाए गए थे और इंटरनेट को भी बंद किया गया था।सरकार ने हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया था,जिनमें नेता भी शामिल थे।

सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कई राजनीतिक दलों ने याचिकाएं दायर कर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।हालांकि दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने फ़ैसला सुनाते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने का फ़ैसला बरक़रार रखा।इस फ़ैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए क़दम उठाने को कहा था।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा पर जम्मू-कश्मीर के आम लोगों,सियासी दलों और विश्लेषकों ने अपनी अलग-अलग राय ज़ाहिर की है।पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि चुनाव की घोषणा का स्वागत करते हैं।साथ ही उन्होंने सरकार के कई फ़ैसलों की आलोचना भी की है।

फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि मैं आज बहुत ख़ुश हूं, अल्लाह का करम है.जिस दुविधा में सियासी जमातों को रखा गया था कि चुनाव होंगे या नहीं होंगे, वो दुविधा आज ख़त्म हो गई है।सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी से चुनाव आयोग ने तारीख़ों के साथ चुनाव की घोषणा की।हम चुनाव आयोग से ये विनती करेंगे कि सभी सियासी जमातों को अपना रोल निभाने का मौका दिया जाए और ये चुनाव अच्छे से हों।जिस तरह से सरकार ने रातों-रात अधिकारियों के तबादले किए हैं, मैं समझता हूं कि चुनाव आयोग को इसे भी देखना चाहिए कि इसकी वजह क्या थी।चुनाव की घोषणा से पहले ही गुरुवार और शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सौ से अधिक अधिकारियों का तबादला किया है।

हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को जो अधिकार दिए गए हैं, उन अधिकारों से नई विधानसभा पर क्या फर्क पड़ सकता है।इस पर फारूक अब्दुल्ला कहते हैं, कि मुझे नहीं मालूम कि इससे क्या फर्क पड़ेगा और ये बात नई विधानसभा बनने के बाद ही पता चल सकती है। उपराज्यपाल को जो अधिकार दिए गए हैं, हम उनके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे।ये अधिकार स्टेट के पास होने चाहिए न कि उपराज्यपाल के पास।ये दिल्ली नहीं है बल्कि जम्मू-कश्मीर है।इनको राज्य का दर्जा भी वापस देना चाहिए।

हाल के समय में गृह मंत्रालय ने एक नोटिफ़िकेशन जारी कर जम्मू और कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र सरकार के कार्य संचालन (दूसरा संशोधन) नियम 2024 के तहत ये तय किया है कि जम्मू-कश्मीर में ऑल इंडिया सर्विस के जितने भी तबादले होंगे या कोई पोस्टिंग होगी, उसके लिए उपराज्यपाल की अनुमति होनी चाहिए।केंद्र सरकार के इस क़दम की कश्मीर में राजनीतिक दलों की तरफ़ से सख़्त आलोचना की गई थी।
चुनाव से पहले इस बदलाव को जम्मू-कश्मीर की पार्टियों ने इस बात का इशारा समझा कि केंद्र सरकार प्रमुख शक्तियां को अपने अधिकार में रखना चाहती है।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के नेता और पूर्व विधायक मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी का कहना है कि चुनाव की घोषणा से आम लोगों में एक उम्मीद बन गई है।जिस तरह एक लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं कराए जा रहे थे, उस वजह से कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।जिस तरह से सरकार बार-बार जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल होने का दावा कर रही थी, लेकिन उसके बावजूद चुनाव नहीं कराए जा रहे थे, तो इन सब बातों को देखकर लगता था कि जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव शायद कभी नहीं हो पाएंगे।अब ये उम्मीद बन गई है कि विधानसभा चुनाव से कुछ दरवाजे़ खुल पाएंगे और जहां हमारे प्रतिनिधि बात कर सकेंगे। लोग अफ़सरशाही के शासन से तंग आ चुके हैं।इस वजह से चुनाव आयोग की घोषणा का हम स्वागत करते हैं।तारिगामी भी संशोधन नियम (2024) पर सवाल उठाते हैं कि इस संशोधन से केंद्र सरकार ने जिस तरह से उपराज्यपाल को अधिकार दिए हैं, उससे विधानसभा और कैबिनेट दोनों ही के अधिकार कम हुए हैं।

जम्मू-कश्मीर भाजपा के मुख्य प्रवक्ता सुनील सेठी का कहना है कि जिस तरह से चुनाव आयोग ने हर बात का ख़याल रखते हुए विधानसभा चुनाव की घोषणा की है, उसकी हम सराहना करते हैं।ये चुनाव जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र के एक नए चैप्टर का आगाज़ होगा।जिस तरह से देश के दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल को अधिकार होते हैं, उसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी होगा। कोई भी इलाक़ा या राज्य केंद्र शासित प्रदेश बनता है तो वहां उपराज्यपाल को अधिकार मिलते हैं।

जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ़ बुखारी ने विधानसभा चुनाव की घोषणा पर ख़ुशी ज़ाहिर की है।पीडीपी ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा पर ख़ुशी तो ज़ाहिर की है,लेकिन पीडीपी का ये भी कहना है कि कि चुनाव करवा के लोगों पर कोई अहसान नहीं किया जा रहा है।

पीडीपी की मीडिया सलाहकार इल्तिजा मुफ्ती कहती हैं कि विशेष अधिकार हटाने के बाद लोगों से सभी अधिकार छीन लिए गए हैं और किसी तरह की कोई सियासी जवाबदेही नहीं है।अब जो चुनाव होने जा रहे हैं उससे कम से कम इतना तो होगा कि लोगों की समस्याओं का समाधान होगा और एक जवाबदेही का माहौल कायम होगा।

एक स्थानीय नागरिक तारिक अहमद कहते हैं कि जम्मू -कश्मीर में चुनाव की घोषणा एक बेहतर कदम है।अब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा भी खत्म किया गया है और लोग उम्मीद करते हैं इन चुनाव से उनकी मुश्किलें कम होंगी और ये चुनाव साफ-सुथरे होंगे।कुछ न कुछ तो हो रहा है।

विश्लेषक कहते हैं कि बीते छह से अधिक वर्षों से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थान काम नहीं कर रहे थे और अब अगर विधानसभा बन भी जाती है तो उसके पास ज़्यादा अधिकार नहीं होंगे।

कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफे़सर रह चुके प्रोफे़सर नूर अहमद बाबा कहते हैं कि इन चुनाव से इतना ज़रूर होगा कि लोगों के काम होंगे।जम्मू-कश्मीर में जिस तरह की विधानसभा बनेगी ये एक नया अनुभव होगा।इस बारे में हम ज़्यादा जानते भी नहीं हैं और न बोल सकते हैं।आगे चलकर जिस तरह के भी हालात उभरेंगे और यहां की विधानसभा जब काम करना शुरू करेगी और एक स्थानीय प्रशासन बनेगा।उसके बाद ये देखा जाएगा कि उनके पास क्या अधिकार होंगे,जबकि 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर के ज़्यादा अधिकार अब केंद्र सरकार के पास हैं।

बता दें कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा चुनाव भी भाजपा के लिए परीक्षा से कम नहीं होंगे।जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बाद भाजपा लगातार ज़ोर देकर कहती रही है कि जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार उन्हीं की होगी।केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जम्मू में दो सीटें जीती थीं, जबकि कश्मीर घाटी से नेशनल कॉन्फ्रेंस को दो सीटें और निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद को एक सीट मिली थी।

More news