श्रीनगर।जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया।चुनाव आयोग ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है।जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में मतदान होगा। 2019 में राज्य और विशेष राज्य का दर्जा छीनने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव होने जा रहा है।विधानसभा चुनाव के लिए 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को तीन चरणों में मतदान होगा। वहीं मतगणना 4 अक्टूबर को होगी।
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बड़ा बयान दिया है।अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद विधानसभा सबसे पहले राज्य और विशेष राज्य का दर्जा छीनने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेगी।राज्य का दर्जा और लोगों से छीने गए अधिकारों को बहाल करने के लिए विधानसभा चुनाव के बाद संघर्ष किया जाएगा।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित विधानसभा के कामकाज का पहला आदेश न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया को यह बताना चाहिए कि 5 अगस्त 2019 को हमारे साथ जो भी हुआ है, उससे जम्मू-कश्मीर के लोग सहमत नहीं हैं और फिर हम उसे बदलना शुरू कर देते हैं, जो हमारे साथ किया गया।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मेरा मानना है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री का एक मुख्य काम यह सुनिश्चित करना होगा कि जम्मू-कश्मीर का जल्द से जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए क्योंकि केवल इसी तरह से हम एक राज्य के रूप में 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर को हुए नुकसान की भरपाई कर सकते हैं।
केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने के आलोचकों में से एक उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यदि केंद्र ने तुरंत जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया तो नेशनल कॉन्फ्रेंस फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। अब्दुल्ला ने कहा कि यह राज्य का दर्जा बहाल करने की लड़ाई होने जा रही है।हमें कुछ भी आसानी से मिलने वाला नहीं है।यहां तक कि यह चुनाव भी हमें आसानी से नहीं मिले हैं।
अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर तीखा हमला बोला और कहा, "निर्वाचित सरकार उपराज्यपाल के तानाशाही शासन को पीछे धकेल देगी."
जम्मू कश्मीर की 90 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए चुनावों की घोषणा सुप्रीम कोर्ट के जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने और 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश देने के महीनों बाद हुई है।जम्मू-कश्मीर में पिछला विधानसभा चुनाव 2014 के नवंबर-दिसंबर में हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने दिसंबर 2023 में सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र सरकार के कदम का समर्थन किया था और इसे पूर्व राज्य के 1947 में भारत के साथ विलय को आसान बनाने के लिए एक अस्थायी प्रावधान कहा था।साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने का भी निर्देश दिया था।
जम्मू-कश्मीर में 19 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन है।जून 2018 में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली तत्कालीन सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था,जिसके कारण राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था और छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन की घोषणा की गई थी।उसके बाद से इसे कई बार बढ़ाया जा चुका है।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आज उपराज्यपाल जम्मू-कश्मीर के अयोग्य और निर्विवाद शासक हैं। यहां तक कि उपराज्यपाल के पास जो शक्तियां हैं, उनका वह निर्वाचित सरकार और एक मजबूत मुख्यमंत्री होने के बाद स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं कर पाएंगे।
उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं होने तक चुनाव में भाग नहीं लेने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का भी संकेत दिया।अब्दुल्ला ने कहा कि मेरे पास संदेशों,ईमेल,फोन कॉल्स की बाढ़ आ गई है।आखिरकार पार्टी निर्णय लेगी और पार्टी अध्यक्ष निर्णय लेंगे।उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर मैं कहूं कि मुझ पर कोई दबाव नहीं है तो यह झूठ होगा।पिछली तीन पीढ़ियों में इन चुनावों को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि यह चुनाव तब हो रहे हैं जब हमारे दो हिस्सों में टूट जाने के बाद लद्दाख हमारा हिस्सा नहीं है।वे हमारी विशेष स्थिति को खत्म करने और परिसीमन के बाद हो रहे हैं।इन चुनावों के दूरगामी परिणाम होंगे।अब्दुल्ला ने कहा कि यह चुनाव लोगों के लिए एक ऐसी विधानसभा चुनने का अवसर होगा जो 5 अगस्त 2019 को जो किया गया है, उस पर अपनी नाखुशी दर्ज करेगी।
कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर उमर अब्दुल्ला अनिच्छुक नजर आए।अब्दुल्ला ने कहा कि भले ही दरवाजा बंद नहीं हुआ है,सीट-बंटवारा अपने साथ चुनौतियां लाता है।कांग्रेस के साथ हमारी चर्चा का एक शुरुआती दौर था,लेकिन वह बहुत आगे नहीं बढ़ सका।उसके बाद हमने उनसे दोबारा नहीं सुना. जहां तक हमारा सवाल है यह कोई बंद अध्याय नहीं है।सीट साझा करना अपनी चुनौतियां लेकर आता है।मेरे पास 90 उम्मीदवार हैं।बहुतायत की समस्या है।अब्दुल्ला ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही वे कांग्रेस के साथ सीट-बंटवारे का समझौता कर लें, लेकिन यह आसान नहीं होगा।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को 41.7 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि पूर्व सहयोगियों,भाजपा और पीडीपी को क्रमशः 17 और आठ प्रतिशत वोट मिले थे।
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